dodah ka dariya ak vardaan bna abhishap in Hindi Fiction Stories by टीना सुमन books and stories PDF | दूध का दरिया एक वरदान बना अभिशाप

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दूध का दरिया एक वरदान बना अभिशाप

भागती दौड़ती मुंबई का एक पॉश एरिया और वहां पर स्थित ठाकुर सूर्यभान सिहं की आलीशान हवेली।
हवेली में रहने वाले ठाकुर सूर्यभान और उनका बेटा ठाकुर प्रताप सिंह उनकी पत्नी ज्योत्सना और उनके दो बच्चे निहारिका सिंह और बेटा रणविजय सिंह॥
खूबसूरत आलीशान हवेली जिसमें 5 पीढ़ियों से रहते ठाकुर सूर्यभान सिंह।
शानो शौकत और ऐशो आराम की कोई कमी नहीं ,
साथ ही ना नई पीढ़ी के लिए किसी तरह की कोई बंदिश।


तो कहानी की शुरूआत होती है रणविजय के बचपन से,
हंसता खेलता हुआ रणविजय अपने दोस्त मानव से छुपन -छुपाई के दौरान जा पहुंचा एक ऐसे कमरे में ,जहां पर किसी को जाने की इजाजत नहीं थी !स्वयं ठाकुर प्रताप सिंह को भी नहीं...

"अरे! यह कहां आ गया मैं ,कौन सी जगह है यह?
यहां तो सब पुरानी चीजें रखी हुई है साथ ही कुछ किताबें भी! कहीं यह दादा जी का सिक्रेट रूम तो नहीं ।"
बालक रणविजय उस वक्त कमरे में कई तरह तरह की चीजें देखता है ,
तभी उसे बाहर से आवाज आती है,-"रणविजय यार कहां हो तुम, कहां छुप गए हो?"
मानव उसे बाहर ढूंढ़ रहा है ,मगर रणविजय कहीं नहीं दिख रहा ।
तभी रणविजय पीछे से आकर मानव को पकड़ लेता है -"हार गए तुम हार गए , कहा था ना तुम मुझे नहीं ढूंढ पाओगे॥"
"अब तुम हमेशा ऐसी नई नई जगह छिप जाते हो जहां मैं तुम्हें नहीं ढूंढ पाता।" मानव नादानी से बोला।
"हां यार वह तो है !मगर तुझे पता है इस बार में एक अलग ही जगह पर छिपा था ,तुम्हें याद है दादाजी का वह सीक्रेट रूम।"
सीक्रेट रूम का नाम सुनते ही मानव के होश उड़ गए -"
"क्या कहा तूने ,दादाजी का सीक्रेट रूम, तुझे पता है ना दादाजी ने वहां जाने के लिए सब को मना कर रखा है !अरे तेरे पापा तक वहां नहीं जा सकते ।"
"हां पता है ,मगर! रणविजय से कोई चीज बच पाती है, तुझे तो पता है कैसा हूं मै। अच्छा तू यह बता चलेगा वहां पर! तुझे भी दिखाता हूं।" रणविजय जोश के साथ कहने लगा॥

"ना भाई ना तेरे दादाजी और अंकल जी मुझे तेरे साथ खेलने देते हैं ,तेरी तरह ही मुझे प्यार करते हैं ,वही बहुत है मेरे लिए! वरना एक माली के बेटे को कौन इतना प्यार करता है! देख दादाजी ने वहां जाने के लिए मना किया है तो कुछ कारण होगा! मैं तो कहता हूं तू भी अब दुबारा वहां मत जाना।" नन्हा मानव रणविजय को समझाते हुए बोला।
मगर रणविजय के मन में कुछ और ही चल रहा था।
तभी दादाजी की कड़क आवाज दोनों के कानों में पड़ी -"क्या कर रहे हो तुम दोनों यहां।"
"क क कुछ नहीं दादाजी बस खेल रहे थे चलो रणविजय।" मानव घबराते हुए बोला।
"पूरी हवेली में एक ही जगह मिली तुम्हें खेलने के लिए जाओ बाहर जाकर खेलो।" ठाकुर साहब नहीं चाहते थे कोई भी उस कमरे के आसपास भी आए।
मगर रणविजय कुछ ठान चुका था। धीरे-धीरे वक्त बीतने लगा नन्हा रणविजय अब युवा हो चुका था और इन बीते वर्षों में रणविजय उस सीक्रेट रूम के कई कोनों को नाप चुका था। साथ ही कई पुरानी पुस्तकें उस सीक्रेट रूम की अब रणविजय के दिमाग में छप चुकी थी ,
कुछ ऐसी कहानियां जो सच होकर भी रणविजय के लिए मात्र कल्पनाएं थी। जो रह-रहकर रणविजय को सोचने पर मजबूर कर देती थी।

"अरे यार तुझे कब से फोन कर रहा हूं चल ।"कल्पना में डूबा हुआ रणविजय अचानक यथार्थ में वापस आ गया।
"हां यार! कुछ पढ़ रहा था तो फोन की तरफ ध्यान ही नहीं गया"। रणविजय किताब को छुपाते हुए बोला।
"तू भी ना पता नहीं क्या-क्या पढ़ता रहता है ,चल अब सारे दोस्त याद कर रहे हैं तुझे।।" मानव रणविजय को लगभग खींचते हुए बोला॥

"क्या यार कहां रहता है ,कभी-कभी तो लगता है तू दोस्त ही नहीं है ,जब भी तुझे फोन करो पता नहीं कहां गुम रहता है, कहीं कोई लड़की तो नहीं मिल गई।" शॉपिंग मॉल में घूमते हुए विकास ने रणविजय को छोड़ते हुए बोला॥
रणविजय के साथ साथ सभी दोस्त खिल खिलाकर हंस दिए।
उसी खिलखिला हट में एक्सीलेटर पर चढ़ते हुए रणविजय का बैलेंस अचानक बिगड़ गया।
"बी केयरफुल" एक मीठी सी आवाज रणविजय के कानों में पड़ी।
फोन पर बातें करती हुई एक खूबसूरत सी लड़की आगे बढ़ गई और साथ ही बढ़ गई रणविजय की धड़कन।।।